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बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2650
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञान

प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के गठन में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की भूमिका की विवेचना कीजिए।

उत्तर-

केन्द्रीय सरकार के गठन में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की भूमिका

भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है। प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में जनता द्वारा, जनता के कल्याण के लिए एवं जनता द्वारा शासन किया जाता है। प्रजातान्त्रिक शासन प्रणाली में सभी नागरिकों को यह अधिकार होता है कि उनकी आवाज को सुना जाए चाहे वे किसी भी धर्म, जाति, लिंग या क्षेत्र के हो। संघीय शासन प्रणाली में नीतियाँ एवं कार्यक्रम राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं जिसके कारण क्षेत्रीय समस्याएँ या तो उपेक्षित हो जाती है या उन पर कम ध्यान दिया जाता है। ऐसी परिस्थिति में उन क्षेत्रीय समस्याओं या मुद्दों को आवाज देने और उन पर राष्ट्र का ध्यान आकर्षित करने के लिए क्षेत्रीय दलों का उदय होता है। प्रजातान्त्रिक शासन प्रणाली में क्षेत्रीय दलों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है क्योंकि ये न केवल क्षेत्रीय समस्याएँ या मुद्दे जो उपेक्षित है कि एक तरफ देश का ध्यान आकर्षित करती है। वरन् उसके निवारण के लिए प्रयास भी करती है।

भारत में बहुदलीय पार्टी व्यवस्था है, जिसमें छोटे क्षेत्रीय दल अधिक प्रबल हैं। राष्ट्रीय पार्टियाँ वे है, जो चार या अधिक राज्यों में मान्यता प्राप्त है। उन्हें यह अधिकार भारत के चुनाव आयोग द्वारा दिया जाता है। जो विभिन्न राज्यों में समय-समय पर चुनाव परिणामों की समीक्षा करता है। इस मान्यता की सहायता से राजनीतिक दल कुछ पहचानों पर अपनी स्थिति की अगली समीक्षा तक विशिष्ट स्वामित्व का दावा कर सकते हैं। भारत के संविधान के अनुसार भारत में संघीय व्यवस्था है, जिसमें नयी दिल्ली में केन्द्र सरकार तथा विभिन्न राज्यों व केन्द्र शासित राज्यों के लिए राज्य सरकार है। इसीलिए भारत में राष्ट्रीय व राज्य (क्षेत्रीय) राजनीतिक दलों का वर्गीकरण उनके क्षेत्र में उनके प्रभाव के अनुसार किया जाता है। भारत एक बहुभाषी बहुजातीय बहुक्षेत्रीय और विभिन्न धर्मों का देश है। भारत जैसे विशाल एवं विभिन्नताओं से भरे देश में क्षेत्रीय दलों के उदय के अनेक कारण हैं। पहला प्रमुख कारण जातीय, सांस्कृतिक एवं भाषायी विभिन्नताएँ हैं। विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की अपनी समस्याएँ होती हैं। जिन पर राष्ट्रीय दलों या केन्द्रीय नेताओं का ध्यान नहीं जाता है परिणामस्वरूप क्षेत्रीय दलों का उदय होता है। क्षेत्रीय दल केन्द्रीय सरकार के गठन में निम्न प्रकार से भूमिका निभाते हैं -

(1) क्षेत्रीय मुद्दों का राष्ट्रीय स्वरूप - क्षेत्रीय दल अपने क्षेत्र अथवा राज्य में प्रभावशाली भूमिका रखते हैं क्योंकि इनका गठन क्षेत्रीय एवं जातिय आधार पर होता है। अतः यह क्षेत्रीय दल अपने क्षेत्र की लोकसभा सीटों को जीत कर, राष्ट्रीय दलों के साथ मिलकर केन्द्र सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं एवं सरकार को समर्थन देने के एवज में क्षेत्रीय मुद्दों को उठाते हैं एवं क्षेत्रीय मुद्दों को राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करते हैं।

(2) पद एवं प्रतिष्ठा के लिए समर्थन - क्षेत्रीय राजनीतिक दल, पद एवं प्रतिष्ठा के लिए केन्द्र सरकार के गठन में राष्ट्रीय दलों का समर्थन अथवा विरोध करते हैं। उन्हें केन्द्र सरकार में उचित प्रतिनिधि त्व अथवा मन माफिक मंत्रालय मिलने पर ही समर्थन अथवा विरोध करते हैं, उन्हें भारत की राजनीतिक स्थिरता से कोई सरोकार नहीं होता है। उनका पूरा ध्यान महत्वपूर्ण पदों और अपने राज्य में अपनी मजबूत स्थिति के लिए केन्द्र सरकार को समर्थन देते हैं और यदि ऐसा नहीं होता है तो समर्थन वापस लेने में तनिक भी संकोच नहीं करते हैं।

(3) स्वलाभ के लिए गठबन्धन - क्षेत्रीय राजनीतिक दल स्वलाभ के लिए केन्द्र सरकार के गठबन्धन में समल्लित होते हैं। यदि केन्द्र में सत्ता पर आशीन गठबन्धन सरकार उनके स्वहितों के अनुरूप कार्य नहीं करती है तो यह क्षेत्रीय दल केन्द्र की गठबन्धन सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की बात करने लगते हैं जिससे सरकार के लोकसभा में बहुमत खोने का भय बना रहता है और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर क्षेत्रीय महत्व के मुद्दे प्रभावी हो जाते हैं। केन्द्र सरकार क्षेत्रीय दलों के समक्ष असहाय रहती है और क्षेत्रीय दल अपने मन माफिक कार्य करते रहते हैं।

(4) संघात्मक स्वरूप का सफल विकास - राज्यस्तरीय दलों के अस्तित्व के कारण ही भारतीय संविधान के संघात्मक प्रावधानों का सफल परीक्षण हो पाता है। राज्यस्तरीय दल केन्द्र की गठबन्धन सरकार में शामिल हो कर भारतीय संविधान के संघात्मक स्वरूप का विकास करते हैं और केन्द्र की एक दलीय सरकार गठबन्धन धर्म के कारण निरंकुश होकर कार्य करती हैं और क्षेत्रीय दल उसकी निरंकुशता पर अवरोध लगाने का रचनात्मक कार्य सम्पन्न करते हैं। इसके साथ ही राज्यों की अस्मिता तथा राज्यों के अधिकारो की आवाज बुलन्द कर राज्यों की संविधान प्रदत्त स्वयत्तता की रक्षा की जा सकी है।

(5) राज्यों एवं केन्द्र में प्रतियोगी प्रणाली का विकास - क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के कारण अनेक राज्यों में चुनावी प्रतियोगिता का विकास हुआ और दल प्रणाली या द्विदलीय व्यवस्था का चलन होना प्रारम्भ हुआ। फलस्वरूप क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दलों के साथ मिलकर केन्द्र सरकार का गठन करते हैं और समर्थन देने के एवज में अपने क्षेत्र, राज्य विशेष के लिये अधिकतम आर्थिक सुविधाओं की माँग करते हैं और देश में क्षेत्रीय प्रादेशिक विषमता को कम करने में सहायक होते हैं।

(6) केन्द्र सरकार की निरंकुशता पर अंकुश - राष्ट्रीय दलों को पूर्ण बहुमत ना मिलने के कारण उन्हें छोटे-छोटे क्षेत्रीय दलों से गठबन्धन करना पड़ता है। इस गठबन्धन सरकार में शामिल होकर, क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दलों की निरंकुशता पर अंकुश लगाते हैं। यदि केन्द्र की गठबन्धन सरकार ऐसा कोई नीतिगत निर्णय लेती हैं जो राष्ट्र हित अथवा क्षेत्र हित के विरुद्ध है तो क्षेत्रीय दल उस निर्णय का सरकार में रहकर विरोध करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर उस नीतिगत निर्णय के विरुद्ध संसद में मतदान भी करते हैं, जिससे केन्द्र सरकार उनकी सलाहों को ध्यान से सुनती है और अन्त में किसी निर्णय पर पहुँचती है। केन्द्र सरकार समर्थन वापस और संसद में सरकार के विरुद्ध मत करने की प्रतिक्रिया को देखकर ऐसी नीतियों को वापस लेती है।

(7) राष्ट्रीय दलों को पूर्ण बहुमत न मिलना - केन्द्र सरकार के गठन में क्षेत्रीय दलों की भूमिका उस समय अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है जब आम चुनाव के बाद किसी भी राष्ट्रीय दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है और 40-50 मतों के लिए राष्ट्रीय दलों को क्षेत्रीय पार्टीयों के समर्थन की आवश्यकता होती है। तो ऐसी स्थिति में राज्यस्तरीय दलों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। राष्ट्रीय दल ऐसे क्षेत्रीय दलों के साथ गठबन्धन बनाते हैं, जो उन्हें केन्द्र सरकार के गठन में समर्थन दे सके और एक स्थाई सरकार का गठन हो सके। क्षेत्रीय दल ऐसी स्थिति का अत्यधिक लाभ उठाते हैं और अपनी शर्तों पर गठबन्धन सरकार में शामिल होकर सरकार को समर्थन देते हैं।

(8) सौदेबाजी की राजनीति - क्षेत्रीय दल अपने समर्थन देने के एवज में राष्ट्रीय दलों से सौदेबाजी करते हैं तथा लाभप्रद पक्ष के साथ गठबन्धन कर, सरकार के समर्थन देते हैं। सौदेबाजी में राज्य विशेष के लिए विशेष आर्थिक पैकेज अथवा अन्य योजनाएँ जो उनके राज्य या क्षेत्र के लिए लाभदायक हो सकती हैं और इन योजनाओं का लाभ उठाकर वे अपना जनाधार बढ़ाने का प्रयास करते हैं।

(9) केन्द्र सरकार में सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व - केन्द्र सरकार में शामिल होकर क्षेत्रीय दल केन्द्र सरकार को एक राष्ट्रीय सरकार का स्वरूप प्रदान करते हैं क्योंकि गठबन्धन सरकार में देश के सभी क्षेत्रों के दल शामिल होते हैं, जो सरकार को एक सन्तुलित राष्ट्रीय। सरकार का स्वरूप प्राप्त होता है मंत्रीमण्डल में सभी क्षेत्रों के नेता एवं प्रतिनिधि शामिल होते है जो मंत्रीमण्डल को विविधता प्रदान करते है राष्ट्रीय सरकार को महत्व प्राप्त होता है साथ ही साथ राष्ट्रीय एकता और अखण्डता में वृद्धि होती है।

(10) क्षेत्रीय असन्तोष व तनावों में कमी - क्षेत्रीय दल केन्द्र सरकार में शामिल होकर सरकार को स्थायी बनाते हैं। इनके साथ ही संघीय स्तर पर प्रनिधित्व प्राप्त होने के चलते क्षेत्रीय स्तर पर व्याप्त होने वाले तत्कालिक असन्तोष व तनावों से भी व्यवस्था को अवगत होने का अवसर प्राप्त होता है। क्षेत्र स्तर, तक केन्द्रीय सरकार व राष्ट्रीय दलों की पहुँच उतनी प्रभावपूर्ण नहीं होती जितनी कि क्षेत्रीय दलों की होती है। अतः क्षेत्रीय दलों के माध्यम से क्षेत्र में व्याप्त विभिन्न असन्तोष के मुद्दों व तनावों के कारणों का ज्ञान प्राप्त होता है और सरकार द्वारा इनके निराकरण का प्रयास किया जाता है। वस्तुत: यह दल संघ व राज्य के मध्य सेफ्टी वाल्व की भूमिका का निर्वाह करते हैं और इस प्रकार संघीय व्यवस्था की रक्षा में सहायक सिद्ध होते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सन 1909 ई. अधिनियम पारित होने के कारण बताइये।
  2. प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, (1909 ई.) के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
  3. प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1909 ई. के मुख्य दोषों पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- 1935 के भारत सरकार अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  5. प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1935 ई. का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
  6. प्रश्न- 'भारत के प्रजातन्त्रीकरण में 1935 ई. के अधिनियम ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
  7. प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1919 ई. के प्रमुख प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- सन् 1995 ई. के अधिनियम के अन्तर्गत गर्वनरों की स्थिति व अधिकारों का परीक्षण कीजिए।
  9. प्रश्न- माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919 ई.) के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- लोकतंत्र के आयाम से आप क्या समझते हैं? लोकतंत्र के सामाजिक आयामों पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- लोकतंत्र के राजनीतिक आयामों का वर्णन कीजिये।
  12. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले कारकों पर प्रकाश डालिये।
  13. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले संवैधानिक कारकों पर प्रकाश डालिये।
  14. प्रश्न- संघवाद (Federalism) से आप क्या समझते हैं? क्या भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है? यदि हाँ तो उसके लक्षण क्या-क्या हैं?
  15. प्रश्न- भारतीय संविधान संघीय व्यवस्था स्थापित करता है। संक्षेप में बताएँ।
  16. प्रश्न- संघवाद से आप क्या समझते हैं? संघवाद की पूर्व शर्तें क्या हैं? भारत के सन्दर्भ में संघवाद की उभरती हुई प्रवृत्तियों की चर्चा कीजिए।
  17. प्रश्न- भारत के संघवाद को कठोर ढाँचे में नही ढाला गया है" व्याख्या कीजिए।
  18. प्रश्न- राज्यों द्वारा स्वयत्तता (Autonomy) की माँग से आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- क्या भारत को एक सच्चा संघ (True Federation) कहा जा सकता है?
  20. प्रश्न- संघीय व्यवस्था में केन्द्र शक्तिशाली है क्यों?
  21. प्रश्न- क्या भारतीय संघीय व्यवस्था में गठबन्धन की सरकारें अपरिहार्य हैं? चर्चा कीजिए।
  22. प्रश्न- क्या क्षेत्रीय राजनीतिक दल भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए संकट है? चर्चा कीजिए।
  23. प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के गठन में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- भारत में गठबन्धन सरकार की राजनीति क्या है? गठबन्धन धर्म से क्या तात्पर्य है?
  25. प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
  26. प्रश्न- राजनीतिक दलों का वर्गीकरण करें। दलीय पद्धति कितने प्रकार की होती है? गुण-दोषों के आधार पर विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- दलीय पद्धति के लाभ व हानियाँ क्या हैं?
  28. प्रश्न- भारतीय दलीय व्यवस्था में पिछले 60 वर्षों में आए परिवर्तनों के कारणों की चर्चा कीजिए।
  29. प्रश्न- आर्थिक उदारवाद के इस युग में भारत में गठबंधन की राजनीति के भविष्य की आलोचनात्मक चर्चा कीजिए।
  30. प्रश्न- दलीय प्रणाली (Party System) में क्या दोष पाये जाते हैं?
  31. प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
  32. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय दलों के उदय एवं विकास के लिए उत्तरदायी तत्व कौन से हैं?
  33. प्रश्न- 'गठबन्धन धर्म' से क्या तात्पर्य है? क्या यह नियमों एवं सिद्धान्तों के साथ समझौता है?
  34. प्रश्न- क्षेत्रीय दलों के अवगुण, टिप्पणी कीजिए।
  35. प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है? सामुदायिक विकास कार्यक्रम का क्या उद्देश्य है?
  36. प्रश्न- 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- पंचायती राज से आप क्या समझते हैं? ग्रामीण पुननिर्माण में पंचायतों के कार्यों एवं महत्व को बताइये।
  38. प्रश्न- भारतीय ग्राम पंचायतों के दोषों की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- ग्राम पंचायतों का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
  40. प्रश्न- क्षेत्र पंचायत के संगठन तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- जिला पंचायत का संगठन तथा ग्रामीण समाज में इसकी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- भारत में स्थानीय शासन के सम्बन्ध में 'पंचायत राज' के सिद्धान्त व व्यवहार की आलोचना कीजिए।
  43. प्रश्न- नगरपालिका क्या है? तथा नगरपालिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- नगरीय स्वायत्त शासन की विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- ग्राम सभा के प्रमुख कार्य बताइये।
  46. प्रश्न- ग्राम पंचायत की आय के प्रमुख साधन बताइये।
  47. प्रश्न- पंचायती व्यवस्था के चार उद्देश्य बताइये।
  48. प्रश्न- ग्राम पंचायत के चार अधिकार बताइये।
  49. प्रश्न- न्याय पंचायत का गठन किस प्रकार किया जाता है?
  50. प्रश्न- ग्राम पंचायत से आप क्या समझते तथा ग्राम सभा तथा ग्राम पंचायत में क्या अन्तर है?
  51. प्रश्न- ग्राम पंचायत की उन्नति के लिए सुझाव दीजिए।
  52. प्रश्न- ग्रामीण समुदाय पर पंचायत के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- भारत में पंचायत राज संस्थाएँ बताइये।
  54. प्रश्न- क्षेत्र पंचायत का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
  55. प्रश्न- ग्राम पंचायत के महत्व को बढ़ाने के लिए सरकार के द्वारा क्या प्रयास किये गये हैं?
  56. प्रश्न- नगर निगम के संगठनात्मक संरचना का वर्णन कीजिए।
  57. प्रश्न- नगर निगम के भूमिका एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- नगरीय स्वशासन संस्थाओं की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- नगरीय निकायों की संरचना पर टिप्पणी लिखिए।
  60. प्रश्न- नगर पंचायत पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- दबाव व हित समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  62. प्रश्न- दबाव समूह से आप क्या समझते हैं? दबाव समूहों के क्या लक्षण हैं? दबाव समूहों द्वारा अपनाई जाने वाली कार्यप्रणाली के विषय में बतायें।
  63. प्रश्न- दबाव समूह अपने हित पूरा करने के लिए किस प्रकार कार्य करते हैं?
  64. प्रश्न- दबाव समूहों के महत्व पर प्रकाश डालिये।
  65. प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
  66. प्रश्न- दबाव समूह किसे कहते हैं? दबाव समूह के कार्यों को लिखिए। भारत की राजनीति में दबाव समूहों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
  67. प्रश्न- मतदान व्यवहार क्या है? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए।
  68. प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
  69. प्रश्न- दबाव समूहों के दोषों का वर्णन करें।
  70. प्रश्न- भारत में श्रमिक संघों की विशेषताएँ। टिप्पणी कीजिए।
  71. प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को दूर करने के सुझाव दीजिए।
  73. प्रश्न- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1996 के अंतर्गत चुनाव सुधार के संदर्भ में किये गये प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
  76. प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
  77. प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  78. प्रश्न- अलगाव से आप क्या समझते हैं? अलगाववाद के कारण क्या हैं?
  79. प्रश्न- भारतीय राजनीति में धर्म की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक पक्ष को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- सकारात्मक राजनीतिक कार्यवाही से क्या आशय है? इसके लिए भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं?
  82. प्रश्न- जाति को परिभाषित कीजिए। भारतीय राजनीति पर जातिगत प्रभाव का अध्ययन कीजिए। जाति के राजनीतिकरण की विवेचना भी कीजिए।
  83. प्रश्न- निर्णय प्रक्रिया में राजनीतिक दलों में जाति की क्या भूमिका है?
  84. प्रश्न- राज्यों की राजनीति को जाति ने किस प्रकार प्रभावित किया है?
  85. प्रश्न- क्षेत्रीयतावाद (Regionalism) से क्या अभिप्राय है? इसने भारतीय राजनीति को किस प्रकार प्रभावित किया है? क्षेत्रवाद के उदय के क्या कारण हैं?
  86. प्रश्न- भारतीय राजनीति पर क्षेत्रवाद के प्रभावों का अध्ययन कीजिए।
  87. प्रश्न- क्षेत्रवाद के उदय के लिए कौन-से तत्व जिम्मेदार हैं?
  88. प्रश्न- भारत में भाषा और राजनीति के सम्बन्धों पर प्रकाश डालिये।
  89. प्रश्न- उर्दू और हिन्दी भाषा को लेकर भारतीय राज्यों में क्या विवाद है? संक्षेप में चर्चा कीजिए।
  90. प्रश्न- भाषा की समस्या हल करने के सुझाव दीजिए।
  91. प्रश्न- साम्प्रदायिकता से आप क्या समझते हैं? साम्प्रदायिकता के उदय के कारण और इसके दुष्परिणामों की चर्चा करते हुए इसको दूर करने के सुझाव बताइये। भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता का क्या प्रभाव पड़ा? समझाइये।
  92. प्रश्न- साम्प्रदायिकता के उदय के पीछे क्या कारण हैं?
  93. प्रश्न- साम्प्रदायिकता के दुष्परिणामों की चर्चा कीजिए।
  94. प्रश्न- साम्प्रदायिकता को दूर करने के सुझाव दीजिये।
  95. प्रश्न- भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
  96. प्रश्न- जाति व धर्म की राजनीति भारत में चुनावी राजनीति को कैसे प्रभावित करती है। क्या यह सकारात्मक प्रवृत्ति है या नकारात्मक?
  97. प्रश्न- "वर्तमान भारतीय राजनीति में धर्म, जाति तथा आरक्षण प्रधान कारक बन गये हैं।" इस पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
  98. प्रश्न- 'जातिवाद' और सम्प्रदायवाद प्रजातंत्र के दो बड़े शत्रु हैं। टिप्पणी करें।
  99. प्रश्न- उत्तर प्रदेश के बँटवारे की राजनीति को समझाइए।
  100. प्रश्न- जन राजनीतिक संस्कृति के विकास के कारण का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- 'भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका' संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  102. प्रश्न- चुनावी राजनीति में भावनात्मक मुद्दे पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- भ्रष्टाचार से क्या अभिप्राय है? भ्रष्टाचार की समस्या के लिए कौन से कारण उत्तरदायी हैं? इस समस्या के समाधान के लिए उपाय बताइए।
  104. प्रश्न- भ्रष्टाचार के लिए कौन-कौन से कारण उत्तरदायी हैं?
  105. प्रश्न- भ्रष्टाचार उन्मूलन के कौन-कौन से उपाय हैं?
  106. प्रश्न- भारत में राजनैतिक, व्यापारिक-औद्योगिक तथा धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की विवेचना कीजिए।
  107. प्रश्न- भ्रष्टाचार क्या है? भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
  109. प्रश्न- भ्रष्टाचार के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
  110. प्रश्न- सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की रोकथाम के सुझाव दीजिये।
  111. प्रश्न- भ्रष्टाचार से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- भ्रष्टाचार की विशेषताओं को बताइए।
  113. प्रश्न- लोक जीवन में भ्रष्टाचार के कारण बताइये।
  114. प्रश्न- राष्ट्रपति शासन क्या है? यह किन परिस्थितियों में लागू होता है? राष्ट्रपति शासन लगने से क्या परिवर्तन होता है?
  115. प्रश्न- दल-बदल की समस्या (भारतीय राजनैतिक दलों में)।
  116. प्रश्न- राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के सम्बन्धों पर वैधानिक व राजनीतिक दृष्टिकोण क्या है? उनके सम्बन्धों के निर्धारक तत्व कौन-से हैं?
  117. प्रश्न- दल-बदल कानून (Anti Defection Law) पर टिप्पणी कीजिए।
  118. प्रश्न- संविधान के क्रियाकलापों पर पुनर्विलोकन हेतु स्थापित राष्ट्रीय आयोग (2002) की दलबदल नियम पद संस्तुति, टिप्पणी कीजिए।

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